यादों के झरोखे भाग २
डायरी दिनांक १५/११/२०२२
रात के आठ बज रहे हैं।
आज का दिन कुछ परेशानियों से भरा रहा। हालांकि जब गहराई से विचार करता हूं तब पाता हूँ कि सारे दिन ही कुछ इसी तरह के रहते हैं। जब मन की बात हो जाये तो लाख परेशानियों में भी परेशानी नहीं होती। पर जब बात मन के अनुसार न हो, तब विशेष समस्या न होने पर भी परेशानी होती है। इस तरह से परेशानी शव्द ही मन की उपज लगता है।
स्मृति का दायरा बढ़ाकर देखता हूँ तो पाता हूं कि जीवन में कितने अनोखे अनुभव मिले। कैसे कैसे लोगों का साथ मिला। कितनों ने उम्मीद से भी ज्यादा बढकर साथ दिया तो कितनों ने उस समय धोखा दिया जबकि उनपर पूरा विश्वास था।
स्मृति का दायरा और बढाता हूँ तब यह भी पाता हूँ कि कितनी बार द्वेष के कारण का ज्ञान ही नहीं हुआ। लगता है कि कितनी ही बार ऐसा भी हुआ होगा जबकि हमारा द्वेष अकारण ही रहा हो।
स्मृति का दायरा बढाने पर ऐसे अनोखे छायाचित्र से खिचते दिखाई देते हैं जो कि यथार्थ में क्या थे, कह पाना अति कठिन है। यथार्थ इतना धुंधला हो चुका है कि समझ में ही नहीं आता। तथा अनुमान से उस यथार्थ की कल्पना ही हो सकती है।
स्मृति के दायरे में ऐसे गहरे मौन दिखाई देते हैं कि आज समझ में ही नहीं आता कि वह मौन आखिर क्यों था। इसके पलट ऐसी स्मृतियाँ भी हैं जबकि लगता है कि उस समय मौन क्यों नहीं रहा।
बात उस समय की है जबकि मैं इंटरमीडिएट का विद्यार्थी था। मेरे एक सहपाठी से मेरी घनिष्ठ मित्रता थी और स्पर्धा भी (नाम बताना आवश्यक नहीं)। आरंभ में मित्रता अधिक थी। धीरे-धीरे स्पर्धा अधिक होती गयी तथा मित्रता पीछे छूटती गयी। आज लगता है कि उस समय हमारे दूसरे सहपाठियों का भी हमारी मित्रता में सेंध लगाने में विशेष योगदान रहा था। शक का छोटा बीज विशाल वृक्ष बन चुका था। विस्फोट उस समय हुआ जबकि बोर्ड परीक्षाओं से ठीक पूर्व मेरी प्रयोगात्मक पुस्तिका चोरी हो गयी। उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए और कुछ दूसरे सहपाठियों द्वारा बताने पर कि वह मेरे बेग में से कुछ निकाल रहे थे, हम दोनों का बहुत विवाद हुआ। पुस्तिका तो मिली नहीं, पर हमारी मित्रता का जो थोड़ा सा सूत्र था, वह पूरी तरह मिट गया। हम दोनों ने ही सफलता पूर्वक इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके पिता जी की ट्रांसफर की जोब थी। मेरी उनसे फिर कभी मुलाकात नहीं हुई। मेरी उत्तर पुस्तिका को गायब करने में उनका हाथ था या नहीं, यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है तथा आज मैं इस अवस्था तक पहुंच चुका हूं कि मात्र संदेह के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर न ढूंढूं। इन सबके बाद भी क्या यह संभव है कि यदि जीवन में हम कभी मिलें तो मित्र की भांति दो चार बातें कर पायें। आज उस विवाद का कोई अर्थ नहीं है, फिर भी बहुत संभव है कि वह विवाद हम दोनों को ही सहज न होने दे। समाज के सामने शायद वह भी झुकना न चाहे और शायद मैं भी नहीं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।
Reena yadav
23-Nov-2022 09:52 PM
बिल्कुल सटीक लिखा है आपने...👍👍
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आँचल सोनी 'हिया'
16-Nov-2022 12:07 AM
Bahut sundar rachna likha hai aapne sir 🌺👌 🌸
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Mohammed urooj khan
15-Nov-2022 09:10 PM
👌👌👌
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